Wednesday 17 June 2015

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस : भारतीय विरासत की वैश्विक पहचान

दिनांक - 14 जून, दिन - रविवार, समय – सुबह के पांच बजे, स्थान – नयी दिल्ली का जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम। आम तौर पर रविवार के दिन दिल्ली में विभिन्न स्थानों पर सुबह-सुबह सैर, व्यायाम या योग करने वालों की संख्या कम ही दिखती है। वजह, सप्ताह भर की थकान को उतारने के लिए रविवार को देर तक सोने का चलन आम है। लेकिन 14 जून रविवार को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में तड़के चार बजे से ही बड़ी तादाद में हर उम्र के लोगों का जुटना शुरु हो गया था। मौका था, ठीक सात दिन बाद होने वाले अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस के पूर्व योग गुरु रामदेव की ओर से आयोजित प्रशिक्षण लेने का।

एक अनुमान के मुताबिक, पांच हजार से भी ज्यादा लोगों ने जहां इस शिविर में भाग लिया, वहीं टेलीविजन के माध्यम से देश विदेश में करोड़ों लोग जुड़े। यह तो महज प्रशिक्षण शिविर था ताकि लोग सात दिनों के बाद देश दुनिया में कहीं भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के सहभागी बने। इसी के साथ योग में विश्वास की बेहद बड़ी बानगी दिखेगी।

वैसे तो हम भारतीय आदि अनंत काल से योग करते आ रहे हैं, लेकिन जब से संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अपील पर 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया, उसके बाद तो योग का स्वरूप ही बिल्कुल नया हो गया है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जब 31 मई को रेडियो पर अपने मन की बात कही तो योग दिवस का जिक्र कुछ इस तरह किया

“मेरे प्यारे देश वासियों! याद है 21 जून? वैसे हमारे इस भू-भाग में 21 जून को इसलिए याद रखा जाता है कि ये सबसे लंबा दिवस होता है। लेकिन 21 जून अब विश्व के लिए एक नई पहचान बन गया है। गत सितम्बर महीने में यूनाइटेड नेशन्स में संबोधन करते हुए मैंने एक विषय रखा था और एक प्रस्ताव रखा था कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग-दिवस के रूप में मनाना चाहिए। और सारे विश्व को अचरज हो गया, आप को भी अचरज होगा, सौ दिन के भीतर भीतर एक सौ सतत्तर देशो के समर्थन से ये प्रस्ताव पारित हो गया, इस प्रकार के प्रस्ताव ऐसा यूनाइटेड नेशन्स के इतिहास में, सबसे ज्यादा देशों का समर्थन मिला, सबसे कम समय में प्रस्ताव पारित हुआ, और विश्व के सभी भू-भाग, इसमें शरीक हुए, किसी भी भारतीय के लिए, ये बहुत बड़ी गौरवपूर्ण घटना है।

लेकिन अब जिम्मेवारी हमारी बनती है। क्या कभी सोचा था हमने कि योग विश्व को भी जोड़ने का एक माध्यम बन सकता है? वसुधैव कुटुम्बकम की हमारे पूर्वजों ने जो कल्पना की थी, उसमें योग एक कैटलिटिक एजेंट के रूप में विश्व को जोड़ने का माध्यम बन रहा है। कितने बड़े गर्व की, ख़ुशी की बात है। लेकिन इसकी ताक़त तो तब बनेगी जब हम सब बहुत बड़ी मात्रा में योग के सही स्वरुप को, योग की सही शक्ति को, विश्व के सामने प्रस्तुत करें। योग दिल और दिमाग को जोड़ता है, योग रोगमुक्ति का भी माध्यम है, तो योग भोगमुक्ति का भी माध्यम है और अब तो में देख रहा हूँ, योग शरीर मन बुद्धि को ही जोड़ने का काम करे, उससे आगे विश्व को भी जोड़ने का काम कर सकता है।

हम क्यों न इसके एम्बेसेडर बने! हम क्यों न इस मानव कल्याण के लिए काम आने वाली, इस महत्वपूर्ण विद्या को सहज उपलब्ध कराएं। हिन्दुस्तान के हर कोने में 21 जून को योग दिवस मनाया जाए। आपके रिश्तेदार दुनिया के किसी भी हिस्से में रहते हों, आपके मित्र परिवार जन कहीं रहते हो, आप उनको भी टेलीफ़ोन करके बताएं कि वे भी वहाँ लोगो को इकट्ठा करके योग दिवस मनायें। अगर उनको योग का कोई ज्ञान नहीं है तो कोई किताब लेकर के, लेकिन पढ़कर के भी सबको समझाए कि योग क्या होता है। एक पत्र पढ़ लें, लेकिन मैं मानता हूँ कि हमने योग दिवस को सचमुच में विश्व कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण क़दम के रूप में, मानव जाति के कल्याण के रूप में और तनाव से ज़िन्दगी से गुजर रहा मानव समूह, कठिनाइयों के बीच हताश निराश बैठे हुए मानव को, नई चेतना, ऊर्जा देने का सामर्थ योग में है।

मैं चाहूँगा कि विश्व ने जिसको स्वीकार किया है, विश्व ने जिसे सम्मानित किया है, विश्व को भारत ने जिसे दिया है, ये योग हम सबके लिए गर्व का विषय बनना चाहिए।“

क्या है योग

करीब 4000 वर्ष पूर्व ऋग्वेद में जिक्र किए योग को आप क्या कहेंगे? क्या एक तरह का व्यायाम, आसन या फिर कुछ और? श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग की मानें तो योग संस्कृत धातु 'युज' से उत्‍पन्न हुआ है जिसका अर्थ है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। करीब 5000 साल पुराने भारतीय ज्ञान का समुदाय की संज्ञा देते संस्था आगे कहती है यद्यपि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं जहाँ लोग शरीर को तोड़ते -मरोड़ते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं | वास्तव में देखा जाए तो ये क्रियाएँ मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमताओं की तमाम परतों को खोलने वाले ग़ूढ विज्ञान के बहुत ही सतही पहलू से संबंधित हैं, वहीं योग पूरी जीवन शैली से जुड़ा है।

वहीं योग का एक अर्थ ‘जोड़’ है। इस संदर्भ में कई ग्रंथों में कहा गया कि यह शरीर, मन और आत्मा को जोड़ने का एक माध्यम है। यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसका उल्लेख कई धर्म जैसे हिंदू, बौद्ध और जैन में मिलता है। अब जब मामला आध्यात्म से जुड़ जाए तो कुछ धार्मिक संगठनों में योग को लेकर विवाद तो होना ही है। कुछ मुस्लिम संगठन योग को अपने धर्म के विरूद्ध मानते हैं। शायद इसी वजह से 2008 में मलयेशिया और फिर बाद में इंडोनेशिया की प्रमुख इस्लामिक संस्था ने योग के खिलाफ फतवा जारी किया, हालांकि इन फतवों को दारुल उलूम, देओबंद ने आलोचना की।

विवाद खत्म करने की कोशिश

इस्लामिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार भी साफ कर चुकी है कि योग करते वक्त ना तो श्लोक पढ़ना जरूरी है और ना ही सूर्य नमस्कार। आयूष मंत्री (जिस मंत्रालय पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के आयोजन की जिम्मेदारी है) श्रीपद नायक कहते हैं कि मुस्लिम योग करते वक्त अल्लाह का नाम ले सकते हैं। वैसे भी दारूल उलूम, देवबंद ने भी योग दिवस का समर्थन करते हुए कहा है कि इसका किसी मजहब से कोई लेना-देना नहीं है। यह संस्था साफ तौर पर मानती है कि योग एक व्यायाम है।

योग के फायदे

अब ये सवाल उठता है कि योग क्यों? इस सवाल का जवाब पद्मविभूषण बेल्लूर कृष्णमचारी सुंदरराज यानी बीकेएस अयंगार की जिंदगी से मिल जाएगा। बीते वर्ष उनके निधन के बाद बीबीसी ने जहां उन्हे योग के ‘इंटरनेशनल ब्रांड ऐम्बैसडर’ के रुप में संबोधित किया, वहीं एक प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा कि

“विश्वविख्यात योग गुरु और अयंगार स्कूल ऑफ योग के संस्थापक बीकेएस अयंगार ने वर्ष 2002 में न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा था कि योग ने उन्हें 65 सालों का बोनस दिया है क्योंकि बचपन में कई बीमारियों से घिरे रहने के कारण बचपन में डॉक्टरों को यह उम्मीद नहीं थी कि वह 20 साल की उम्र से ज्यादा जी पाएंगे।” लेकिन उन्होंने एक लंबी जिंदगी जी और 95 वर्ष की उम्र में अंतिम सांसे ली। उन्होंने अयंगारयोग की स्थापना की तथा इसे सम्पूर्ण विश्व में मशहूर बनाया। उन्होंने विभिन्न देशों में अपने संस्थान की 100 से अधिक शाखाएं स्थापित की। यूरोप में योग फैलाने में वे सबसे आगे थे।

आयंगर जैसे कई और उदाहरण हमें अपने आस पास ही मिल जाएगें। कई चिकित्सक भी कहते हैं कि बीमारी से मुक्ति तो मिल ही सकती है, वहीं कई बीमारियों को अपने करीब फटकने से भी रोक सकते हैं। दरअसल, योग एक स्वस्थ्य जीवन का आधार है और इसके लिए सुबह-सुबह का वक्त सबसे अच्छा होता है जब पेट पूरी तरह से खाली हो। जगह साफ-सुधरी हो और वहां पर ताजी हवा का प्रवाह होता रहे।

अब सवाल यह है कि योग कितनी देर की जाए। इस बारे में योग गुरु रामदेव कहते हैं कि 15-30 मिनट का समय पर्याप्त है, बस जरूरत इस बात कि है कि इसे पूरे ध्यान से किया जाए। यह भी सलाह दी जाती है कि जिस आसन के बारे में जानकारी नहीं है या करना नहीं आता, उसे नहीं करना चाहिए। यह बिल्कुल उसी तरह है जिस तरह से व्यायाम की कुछ विधियों के बारे में जानकारी नहीं है औऱ किया जाए तो उससे दिक्कत ही पैदा हो सकती है।

योग को नयी पहचान

फिलहाल, अब नजर 21 जून पर है जब दिल्ली के राजपथ पर प्रधानमंत्री की मौजूदगी में 35 हजार से ज्यादा लोग योग करेंगे। इसके साथ ही विश्व के 190 देशों में (जिनमें इस्लामिक देशों के संगठन यानी OIC के 47 सदस्य भी शामिल है) भारतीय दूतावासों के सहयोग से योग कार्यक्रम की तैयारी है। वरिष्ठ मंत्रियो में जहां विदेश मंत्री सुषमा स्वराज न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में आयोजित विशेष कार्यक्रम में भाग लेंगी वहीं वित्त मंत्री अरुण जेटली सैन फ्रांसिस्को और अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला शिकागो के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। इसके अलावा भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी नागपुर, शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू चेन्नई, दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद कोलकाता, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी शिमला और संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी रामपुर में आयोजित योग कार्यक्रमों में मौजूद रहेंगे।

एक और महत्वपूर्ण बात। शायद दुनिया भर में यह पहला मौका है जब एक वर्ष के भीतर किसी भी सरकार के दो कार्यक्रमों को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में जगह दिए जाने की तैयारी है। वित्तीय समावेशन के लिए सरकार की महत्वकांक्षी योजना प्रधानमंत्री जन धन य़ोजना को पहले ही गिनीज बुक में जगह दी गयी जब बीते वर्ष 23 से 29 अगस्त के बीच 1,80,96,130 बैंक खाते खोले गए। यह सात दिनों के भीतर सर्वाधिक खाता खोलने का कीर्तिमान है। अब कोशिश है कि एक साथ सबसे ज्यादा लोगों के द्वारा एक आसन करने का उपलब्धि दर्ज करायी जाए।

- शिशिर सिन्हा
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.ये लेखक की
 निजी राय है)

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