Courtesy: Photo Division |
आपको आश्चर्य होता होगा कि किसी देश के प्रधानमंत्री ने आपके कॉलेज में आना क्यों पसंद किया, स्टूडेंट्स को मिलना क्यों पसंद किया। मेरी यह कोशिश है कि अगर दुनिया में भिन्न–भिन्न समाजों को समझना है, तो दो क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। एक, वहां की शिक्षा प्रणाली और दूसरी, वहां के आर्ट एंड कल्चर। यह दो महत्वपूर्ण पहलू होते हैं, जिससे इतिहास भी समझ में आ जाता है और उस देश की प्रकृति भी समझ में आ जाती है और एक मोटा-मोटा अंदाज लगा सकते हैं कि वो कौन सी बातें हैं जिसके साथ हम बड़ी निकटता से जुड़ सकते हैं। मैंने सुना है कि आपकी इस यूनिवर्सिटी का बड़ा नाम है। यहां के बड़े रहीस, यहां के विद्यार्थी रहे हैं और उसके कारण सहज रूप से जापान और जापान के बाहर आपकी इस यूनिवर्सिटी का काफी संपर्क रहा है। मैंने सुना है भारत के भी बहुत सारे विद्यार्थी कभी न कभी यहां स्टूडेंट के रूप में रहे हैं।
आपके मन में बहुत स्वाभाविक होगा कि भारत में महिलाओं की क्या स्थिति है, किस प्रकार का उनका जीवन है। शायद दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है, जहां के सामाजिक जीवन में जो भगवान की कल्पना की गई है। उस भगवान की कल्पना में विश्व में सभी जगह पे, सभी समाजों में ज्यादातर पुरूष भगवान की ही कल्पना की गई है। एकमात्र भारत ऐसा देश है, जहां ‘स्त्री भगवान’ की कल्पना की गई है। ‘गॉडेस’ का कंसेप्ट है वहां। आज जो मिनिस्ट्री का फोरमेशन जो होता है, उसके संदर्भ में हमारी जो पुरानी मिथोलॉजी को सोचूं तो हमारे यहां पूरा एजुकेशन माता सरस्वती, गॉडेस सरस्वती से जुड़ा हुआ है। अगर पैसों की बात करें, धन की बात करें तो गॉडेस लक्ष्मी की कल्पना है। अगर आप सोचे कि सिक्युरिटी का मामला है होम अफेयर्स की एक्टिविटी है तो महाकाली की कल्पना है। अगर फूड सिक्युरिटी की सोंचे तो हमारे यहां देवी अन्नपूर्णा की कल्पना है। यानी पूरी मिनिस्ट्री महिलाओं के हाथ में थी। मेजर पोर्टफोलियो महिलाओं के हाथ में थे। यानी इस कल्पना से भारत की विशेषता रही है और आपने देखा होगा कि दुनिया में कई देश ऐसे हैं कि जहां आज भी चीफ ऑफ द स्टेट के रूप में महिलाओं को प्रधान्य नहीं है, लेकिन एशियन कंट्रीज में यह परंपरा रही है। चाहे हिन्दुस्तान देखिये, बंगला देश देखिये, श्रीलंका देखिये, पाकिस्तान देखिये, इंडोनेशिया देखिये इवन थाइलैंड देखिये कोई न कोई हैड ऑफ द कंट्री महिला रही हैं और यह वहां की विशेषता रही है।
लेकिन भारत जब गुलाम हुआ और जब अंग्रेजों ने हिंदुस्तान छोड़ा तो यह बड़ा दुर्भाग्य था हमारे देश का, सिर्फ 9 परसेंट विमेन एजुकेशन था। उसके बाद कई इनिशिएटिव लिए गए और व्यक्तिगत रूप से मैंने गर्ल चाइल्ड एजुकेशन को बहुत ही प्राथमिकता दी है। मैं भारत का प्रधानमंत्री बना, उससे पहले मैं भारत के वेस्टर्न पार्ट में एक छोटा सा स्टेट है गुजरात, मैं उस गुजरात का मुख्यमंत्री था। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मैंने गर्ल चाइल्ड एजुकेशन पर एक बहुत बड़ा इनीशिएटिव लिया था। मैंने अपने आप को डेडिकेट किया था, गर्ल चाइल्ड एजुकेशन के लिए।
गर्ल चाइल्ड एजुकेशन के प्रति मेरा इतना लगाव है, मेरे मन में इतना भाव जगा है कि जैसे, हेड ऑफ द स्टेट कई सारे फंक्शन में जाते हैं तो बहुत सारे गिफ्ट मिलते हैं, नई-नई चीजें लोग देते हैं, हिन्दुस्तान में ऐसी परंपरा है। मैं सारी चीजें ट्रेजरी में जमा करता था। जमा करने के बाद उसकी ऑक्शन करता था। ऑक्शन से जो पैसा आता था, वह सारे पैसे मैं गर्ल चाइल्ड एजुकेशन के लिए डोनेट कर देता था।
मैं 14 साल मुख्यमंत्री रहा। 14 साल में जो चीजें मुझे मिली थी, जो छोटी-मोटी चीजें मिली थी, उसकी नीलामी की। जब मैंने गुजरात छोड़ा तो मैंने 78 करोड़ रुपये गुजरात सरकार की तिजोरी में जमा कराये थे, जो बच्चियों की शिक्षा के लिए खर्च किये जा रहे हैं।
भारत की एक और जानकारी भी शायद आपके लिए आश्यर्चजनक होगी, वहां के पोलिटिकल सिस्टम में एक लोकल सेल्फ गवर्नमेंट होती है, लोग अपना म्युनिसिपेलिटी का चुनाव करते हैं, पंचायत का चुनाव करते हैं, और उसका जो बॉडी बनता है वह पांच साल के लिए वहां का कारोबार चलाते हैं। आपको जानकर खुशी होगी कि वहां 33 प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण है। कोई भी इलेक्टेड बॉडी होगा, लोकल लेवल पर, जहां 33 प्रतिशत महिलाओं का रिप्रजेंटेशन जरूरी है। इतना ही नहीं, हर सेकेंड इयर के बाद, चीफ आफ दि यूनिट, वह भी महिला ही होती है। कभी मेयर महिला बनती हैं, कभी डिस्ट्रिक प्रेसिडेंट महिला बनती हैं, कभी ब्लॉक प्रेसिडेंट महिला बनती हैं। इसलिए वहां डिसीजन मेकिंग प्रोसेस में महिलाओं को प्राथमिकता देने का एक संवैधानिक कानूनी प्रबंध किया गया है।
आपको जानकार यह भी खुशी होगी कि अभी-अभी जो मेरी सरकार बनी है, 100 दिन हुए हैं सरकार को। मेरा जो कैबिनेट है, कैबिनेट में 25 प्रतिशत महिला हैं। इतना ही नहीं, हमारी जो विदेश मंत्री हैं, वह भी महिला ही हैं। तो आप कल्पना कर सकते हैं कि भारत में बहुत प्रयत्न पूर्वक इस 50 प्रतिशत पोपुलेशन को विकास की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी बनाने के लिए शैक्षणिक क्षेत्र से, राजनीतिक क्षेत्र से जीवन को आगे बढ़ाने का पूरा प्रयास किया है।
हमारे सामने एक बहुत बड़ी चुनौती यह है कि जितना हम शिक्षा प्राप्त करते हैं, साइंस, टेक्नोलोजी, कंप्यूटर वर्ल्ड, कभी-कभी डर रहता है कि आज भी इस व्यवस्था से हम रोबोट तो तैयार नहीं कर रहे हैं। मुझे खुशी है कि आपके इस विश्वविद्यालय में ह्यूमेनिटी पर जोर है। उसका प्राइमरी जो शिक्षा है, वह इन सब विषयों से जुड़ी हुई है। मैं मानता हूं कि ये ह्यूमेनिटी का जो कंसेप्ट है, तकनीक कितनी ही आगे क्यों ना बढ़े, कितने ही रोबोट क्यूं न तैयार करें, पर मानवीय संवेदना के बिना जीवन असंभव है। और इसलिए मैं कभी-कभी कहता हूं, साइंस ऑफ थिकिंग एंड आर्ट ऑफ लिविंग, ये दोनों का कॉम्बिनेशन चाहिए। मेरे लिए खुशी की बात है कि मुझे आज आप सबसे मिलने का मौका मिला।
आपमें से कितने लोग हैं जो कभी हिन्दुस्तान गए हैं ?
आपमें से कितने हैं, जिनकी हिन्दुस्तान जाने की इच्छा है ?
तो आप सब लोगों का हिन्दुस्तान में स्वागत है। जरूर आइए। भारत एक बहुत बड़ा, विशाल देश है, उसे देखिए। मैं इस विश्वविद्यालय के सभी महानुभावों का आभारी हूं कि आप सबके साथ बात करने का अवसर मिला। धन्यवाद।
Courtesy: pib.nic.in
No comments:
Post a Comment